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Channel: ग़ालिब के ख़त
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ग़ालिब का ख़त-41

पाँच लश्कर का हमला पै दर पै इस शहर पर हुआ। पहला बाग़ियों का लश्कर, उसमें पहले शहर का एतबार लुटा। दूसरा लश्कर ख़ाकियों का, उसमें जान-ओ-माल-नामूस व मकान व मकीन व आसमान व ज़मीन व आसार-ए-हस्ती सरासर लुट गए।

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ग़ालिब का ख़त-42

मेरा हाल सिवाय मेरे ख़ुदा और ख़ुदाबंद के कोई नहीं जानता। आदमी कसरत-ए-ग़म से सौदाई हो जाते हैं, अक़्‍ल जाती रहती है। अगर इस हजूम-ए-ग़म में मेरी कुव्वत मुतफ़क्रा में फ़र्क आ गया हो तो क्या अजब है?

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ग़ालिब का ख़त-43

तुम्हारा ख़त रामपुर पहुँचा और रामपुर से दिल्ली आया। मैं 23 शाबान को रामपुर से चला और 30 शाबान को दिल्ली पहुँचा। उसी दिन चाँद हुआ। यक शंबा रमज़ान की पहली, आज दो शंबा 9 रमज़ान की है।

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ग़ालिब का ख़त-44

तुझको लिखूँ कि तेरा बाप मर गया और अगर लिखूँ तो फिर आगे क्या लिखूँ कि अब क्या करो। मगर सब्र वह एक शेवा-ए-फ़र्सूदा इब्नाए रोजगार का है। ताजियत यूँ ही किया करते हैं और यही कहा करते हैं कि सब्र करो।

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ग़ालिब का ख़त-45

अंदोह-ए-फ़िराक़ ने वो फ़शार दिया कि जौहर-ए-रूह गुदाज़ पाकर हर बुन-ए-मू से टपक गया। अगर आपके इक़बाल की ताईद न होती, तो दिल्ली तक मेरा‍ ज़िंदा पहुँचना मुहाल था।

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बूढ़े को मां की गाली

गालिब को उनके हासिद अक्सर फहश ख़त लिखा करते थे- किसी ने एक ख़त मे गालिब को मां की गाली लिखी। पढ़कर गालिब मुस्कुराए और कहने लगे- उल्लू को गाली देना भी नही आती। बूढ़े या अधेड उम्र के लोगों को बेटी की...

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मिर्जा गालिब : अपनी सोच के जादू से नई दुनिया रचने वाली शख़्सियत

मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1717 को काला महल, आगरा में हुआ था। उनकी कलम ने दिल की हर सतह को छुआ, किसी भी मोड़ पर कतराकर नहीं निकले।

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मिर्जा गालिब : अपनी सोच के जादू से नई दुनिया रचने वाली शख़्सियत

मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1717 को काला महल, आगरा में हुआ था। उनकी कलम ने दिल की हर सतह को छुआ, किसी भी मोड़ पर कतराकर नहीं निकले।

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Ghalib jayanti: 27 दिसंबर को मिर्जा गालिब की जयंती, पढ़ें उनके लोकप्र‍ि‍य शेर

  mirza galib: 27 दिसंबर को मिर्जा गालिब का जन्‍मदिवस है। उनका गालिब का पूरा नाम मिर्जा असदुल्लाह बेग खान था। उन्होंने कई बेहतरीन शेर लिखे है, जो बेहद लोकप्र‍ि‍य हैं। आज भी सोशल मीडि‍या, फेसबुक...

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