बहुत दिनों में आपने मुझको याद किया। साल-ए-गुज़श्ता इन दिनों में मैं रामपुर था। मार्च सन् 1860 में यहाँ आ गया हूँ, अब यहीं मैंने आपका ख़त पाया था, आपने सरनामे पर रामपर का नाम नाहक़ लिखा।
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